राजकुमारी अनंगिता का उत्सर्ग
दिल्लीपति पृथ्वीराज द्वारा कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता का हरण, और फिर उसी बात को लेकर पृथ्वीराज और जयचंद के बीच स्थाई दुश्मनी बन जाना मध्यकालीन इतिहास का एक बहुचर्चित प्रसंग है। इसी दुश्मनी के कारण जयचंद पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि तराइन की लड़ाई में उन्होंने गौरी की मदद की।
हालांकि पृथ्वीराज रासो के सिवा पृथ्वी-संयोगिता प्रेम प्रसंग का कहीं और कोई उल्लेख नहीं है। इस्लामी स्रोतों ने भी इस प्रेम प्रसंग का कहीं जिक्र नहीं किया है और न ही इस बात का उल्लेख किया है कि पृथ्वीराज पर हमले के लिए जयचंद ने गौरी को बुलाया। रासो दरबारी कवि की रचना है, इसलिए उसकी प्रमाणिकता पर संदेह किया जाता है। पृथ्वीराज के एक और दरबारी कवि जयानक ने पृथ्वीराज विजय में गंगा किनारे की तिलोत्तमा अप्सरा जैसी एक सुन्दर स्त्री का पृथ्वी के प्रेम में पड़ना दिखाया है, लेकिन वह अध्याय अधूरा रह गया है, और उस स्त्री के नाम और दूसरे कोई विवरण किताब में नहीं दिए गए हैं। जगनिक के आल्ह खंड में जरूर इस प्रेम प्रसंग और दुश्मनी दोनों के उल्लेख हैं।
पृथ्वीराज को हारने के बाद गौरी ने कन्नौज पर हमला किया। मुकाबला हुआ इटावा के चंद्रवार में। इस हमले का दूसरा छोर मनहेच से जुड़ा हुआ है। जयचंद की हार के तुरंत बाद गौरी के सेनापति कुतुब्बुद्दीन ऐबक ने मनहेच पर हमला किया। मनहेच को जीत कर ही काशी की ओर बढ़ा जा सकता था। ऐबक की सेना मनहेच की ओर बढ़ी होगी तो सेना की पहली कतार के लोग तो चंदवार में जाकर जूझ गए रहे होंगे, लेकिन दूसरी कतार ने किले को सुरक्षित किया होगा। ऐबक के कई सेनानी मारे गए। ज़फराबाद में उनकी कब्रें बनी हैं। लेकिन किले के रक्षक राजा साकेत सिंह हमला नहीं रोक पाए। उन्हें हटना पड़ा। उन्होंने मिर्जापुर जा कर लड़ाई का दूसरा मोर्चा खोला।
किले पर उस समय राजा जयचंद की दूसरी रानी और उनकी बेटी अनिंद्य सुंदरी अनंगिता मौजूद थीं। जयचंद की इस बेटी का नाम उपलब्ध नहीं है। फिल्म में उसे संयोगिता से मिलता-जुलता एक कल्पित नाम अनंगिता दे दिया गया है। ऐबक की सेना उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ पड़ी। बचाव का कोई रास्ता न देख कर मां और बेटी ने किले से कूद कर जान दे दी।
फूल सी राजकुमारी गिर कर टकराई होगी किसी पत्थर से। और उसके प्राण-पखेरू भगवती तारा या दुर्गा का स्मरण करते हुए अनंत आकाश में विलीन हो गए होंगे। बहुत दुखी मन से मनहेच ने अपनी इस प्यारी बेटी को विदा दिया होगा। तब से , लगातार ८०० साल से मनहेच अपनी इस प्यारी बेटी को मरी माता मानते हुए अपनी स्त्री जाति की रक्षा के लिए उनकी पूजा करता चला रहा है। कोई मंदिर या कोई पूजा स्थल नहीं बना है, लेकिन स्मृति है जो चलती चली आ रही है।
हार और पराजय के बावज़ूद ८०० साल से राजकुमारी अनंगिता के कारण मनहेच का शीश आत्मगौरव और स्वाभिमान से तना हुआ है। इस गौरव को हम लोग और बढ़ा रहे हैं। पूजा स्थल को भी सजायेंगे। गीत है -
हे मरी मैया/ ओ मरी मैया रक्षा करहु हमार
जीवन की तुम ज्योति निराली प्राणों की असधार
हे मरी मैया/ ओ मरी मैया रक्षा करहु हमार
स्त्री की तुम लाज हो माता आन बान तुम शान
धरती की चूनर तुम निर्मल धरती का अभिमान
हे मरी मैया/ ओ मरी मैया रक्षा करहु हमार
धर्म नीति जब संकट आए मानवता जब करे गुहार
नव दुर्गन के द्वार बसहु तुम जगदंबा तू तारनहार
हे मरी मैया/ ओ मरी मैया रक्षा करहु हमार।
सत्य हरिश्चंद्र की सगरी नगरी करती यही गुहार
हे मरी मैया/ ओ मरी मैया रक्षा करहु हमार।
ज़फराबाद जौनपुर आख्यान फिल्म में इस गीत को प्रख्यात गायिका डॉ. सोमा घोष ने गाया है। गीत उन्हीं पर पिक्चराइज भी किया जा रहा है।
मरी माता के स्थल को स्थापित किये जाने से भी ज़फराबाद के इतिहास का एकांगीपन दूर होगा।