पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान

पूर्वांचल के आर्थिक-औद्योगिक विकास और उसके लिए जरूरी सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव का मंच

Zafarabad Jaunpur Aakhyan
अवंतिकापुरी
हम लोगों ने पूर्वांचल के लगभग १२ स्थलों को इतिहास की मैपिंग के लिए चुना है। इनमें फैज़ाबाद और आजमगढ़ का निज़ामबाद व अवंतिकापुरी शामिल हैं। ।

पूर्वांचल सदियों-सदियों से प्रवास और प्रव्रजन की पीड़ा झेल रहा है। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान का उद्देश्य पूर्वांचल व देश के दूसरे प्रवास-प्रव्रजन प्रभावित इलाकों की आर्थिक-औद्योगिक गतिविधियों को तेज करना और उसके लिए जरूरी सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों के लिए काम करना है।

संस्था ने सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों के लिए २०१५ से काम करना शुरू किया, लेकिन गतिविधियों में इजाफा २०१५ से आया। २०१५ में लखनऊ में चतुर्थ श्रेणी की ३६८ भर्तियों के लिए २३ लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया, जिनमें डेढ़ दर्जन से ज्यादा पीएचडी और कई हजार इंजिनीरिंग ग्रेजुएट्स और दूसरे ऊंची पढाई किये लोग भी शामिल थे। स्थितियां बदल रही हैं, लेकिन बढ़ती आबादी स्थितियों को नहीं बदलने देती। स्थितियां बदलें इसके लिए जरूरी है कि सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर बदलावों के लिए ज्यादा सक्रियता से काम किया जाए, और सब कुछ सरकार के भरोसे ही नहीं छोड़ा जाए।

आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय उत्पादों को बाजार देने, व्यावसायिक-व्यापारिक मंडलों को बढ़ाने , कृषि को नयी उत्पादन तकनीकों से जोड़ने, पूरक उद्योगों को विस्तार देने, उद्योग-उद्यम के नए केंद्र बनाने और पुराने केंद्रों को पुनर्जीवित करने, मैकाले की शिक्षा पद्धति में बदलाव लाने आदि के कई अभियान चलाये गए। इन मुद्दों को लेकर ९ अप्रैल से लेकर १३ अप्रैल, २०२० तक जौनपुर में पांच दिनों का विकास महोत्सव नियोजित किया गया था, जिसे कोरोना की वजह से जिसे रोकना पड़ा, लेकिन कार्यक्रम की तैयारियां जिस बड़े पैमाने पर की गयी थीं, उससे कई मुद्दे स्वतः चर्चा में आ गए। संयोग है कि उनमें से कई मुद्दों पर उन्हीं दिनों राज्य सरकार का भी फोकस बना, और क्षेत्रवार औद्योगिक विकास की बात भी सामने आयी। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने का राष्ट्रीय अभियान भी चला। पू वि प्र ने स्थानीय विशेषताओं को स्थानीय स्वाभिमान से बहुत अच्छे से गुंथा था। हमारे अभियानों के शीर्षक इस तारह थे- जैसे कि --आजमगढ़ से हैं तो आपके ड्राइंग रूम में होनी ही चाहिए निज़ामबाद की काली मिट्टी की सुराही। या कि बलिया से हैं तो आपके किताबों के रैक में दीखनी चाहिए केदारनाथ सिंह की कोई किताब। इस तरह के अभियान खूब चर्चित हुए।

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भगवती तारा और नागमाता जरत्कारु
Zafarabad Jaunpur Aakhyan
भारतीय भाषाओं के समर्थन में पूर्वांचल और काशी विद्यापीठ के कुलपतियों के पत्र
Zafarabad Jaunpur Aakhyan
पद्मविभूषण पं. छन्नू महाराज काशी विद्यापीठ की सभा में दीप जलाते हुए

संस्था ने २०१५ के बाद दो बड़े सफल अभियान चलाये। इनमें से एक, भोजपुरी फिल्मों और गीत-संगीत में फैली अश्लीलता के खिलाफ चलाया गया। जिसे पद्म विभूषण पंडित छन्नू महाराज, डॉ. काशीनाथ सिंह, श्री केशव जालान , ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रमौलि, डॉ. रीता बहुगुणा जोशी, पंडित साजन मिश्रा, कबीर मठ के महंत श्री विवेक दास, महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री श्री कृपाशंकर सिंह, पूर्व नगर विकास मंत्री श्री चंद्रकांत त्रिपाठी और पूर्व महिला बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती विद्या ठाकुर जैसे बहुत जाने-माने व्यक्तित्वों का समर्थन मिला। पद्मश्री डॉ, सोमा घोष को इस अभियान का चेहरा बनाया गया था।

दूसरा अभियान भारतीय भाषाओं को मजबूत करने और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का था। इस अभियान को प्रख्यात लेखिका श्रीमती पुष्पा भारती ने नेतृत्व दिया। इस अभियान से देश के कई जाने-माने साहित्यकार, पत्रकार और शिक्षाविद जुड़े। कई कुलपति भी इस अभियान में सीधे सहभागी रहे। नई शिक्षा नीति बनाते समय तत्कालीन शिक्षा मंत्री महोदय के सामने भी कई बातें बहुत विस्तार से रखी गयीं। उनमें से कई बातें शिक्षा नीति में भी सामने आईं।

शादी-ब्याह में दहेज और दिखावे के चलन के खिलाफ भी पू वि प्र ने बहुत सफल अभियान चलाये। इस अभियान में खूब कल्पनाशीलता रही है। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी कई बहुत प्रभावी संवाद बनाये गए। नरेंद्र दाभोलकर की हत्या, शिवसेना नेता संजय राउत द्वारा उत्तर भारतीयों को साकीनाका बलात्कार और हत्या प्रकरण से जोड़ने और सुशांत सिंह राजपूत की मौत , और बोहरा समिति की जांच रिपोर्ट सामने न लाने जैसे मुद्दों पर भी खुल कर बात की गयी। कुछ अभियानों की बानगी साथ के पन्नों में संलग्न है।

अभी संस्था द्वारा पूर्वांचल के क्षेत्रीय इतिहास को लेकर काम किया जा रहा है। पूर्वांचल में कई ऐसे स्थान हैं, जिनका मूल इतिहास लुप्त हो गया है। इनमें से दो बड़ी जगहें हैं ज़फराबाद और जौनपुर। जिन्हें इस्लामी शासन के दौरान ध्वस्त करके उन पर इस्लामी पहचान थोप दी गयी। उनके पुराने नाम भी मिटा दिए गए। पू वि प्र गहरे अध्ययन के साथ इन दोनों ही नगरों के पुराने इतिहास का सामने ला रहा है। इसे ड्रामा डाक्यूमेंट्री फिल्म के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। फिल्म का नाम ``जफराबाद जौनपुर आख्यान : मध्यकाल के इस्लामी झंझावात में खो गए भारत के दिल के दो टुकड़ों की खोज'' है। इस कॉमन हैडर के तहत जफराबाद के इतिहास को लेकर `ज़फराबाद कथा', और जौनपुर के इतिहास को लेकर `जौनपुर संवाद' नाम की दो फुल लेंथ फिल्में बनाई जा रही हैं। जिन्हें पार्ट -१ और पार्ट-२ के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा।

इस प्रस्तुति से उम्मीद की जा रही है कि ज़फराबाद और जौनपुर से इस्लामी संस्कृति का बोझ उतरेगा और इन दोनों नगरों को उनकी पुरानी पहचान वापस मिल जायेगी। इस काम से पूर्वांचल के क्षेत्रीय इतिहास को तो बढ़ावा मिलेगा ही, इस खोज में कई ऐसी बातें सामने आ रही हैं, जो भारत के इतिहास को भी प्रभावित करेंगीं। और , संभवतः विश्व इतिहास पर भी असर डालेंगी। धर्म-अध्यात्म, इतिहास, पुरातत्व, स्वर विज्ञान और मानव प्रव्रजन आदि के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। संस्था द्वारा ज़फराबाद और जौनपुर के ऐतिहासिक स्थानों, अवशेषों , स्मृतियों के संरक्षण की भी कोशिश की जा रही है। इन सब कामों के विवरण आगे फिल्म से जुड़े पृष्ठों पर दिए गए हैं।

पू वि प्र ने पूर्वांचल के एक दर्जन ज्यादा स्थानों को इतिहास की मैपिंग के लिए चुना है। जिनमें फैज़ाबाद,अकबरपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फतेहपुर और देवरिया के कई स्थान शामिल हैं। आजमगढ़ के निज़ामबाद व अवंतिकापुरी की भी मैपिंग की जा रही है। अगले आख्यान रघुवंशम् में इक्ष्वाकु वंश और रामकथा से जुड़े स्थलों की भी प्रामाणिक प्रस्तुति करने का प्रयत्न किया जा रहा है।