स्वजनों से संवाद

भारत के दिल का हिस्सा रहा है ज़फराबाद जौनपुर। इसलिए जब से इस्लामी धर्म परिवर्तन शुरू हुआ, इस बात की भी चर्चा होती रही कि धार्मिक आक्रमण को रोका केसे जाए? एक ही घर, परिवार, एक ही लोग बंट कर दो हो रहे थे; और दो ही नहीं, जैसे सदा-सर्वदा के लिए विलग और शत्रु भी हो रहे थे।

तिलकधारी राजा हसनपुर का महल

तब से, महमूद गज़नवी के हमले के समय से ही, जब जबरिया धर्म परिवर्तन कराने के अभियान शुरू किये गए; देव मूर्तियां तोड़ कर गजनी के प्रवेश द्वारों पर बिछाया गया; गज़नी, बुखारा, समरकंद और खीवा के बाजारों में पराजित लोगों को ही नहीं रियाया को भी यों ही गुलाम बना कर बेचा गया; स्त्रियों को लूट की सामग्री मान लिया गया; किसी धर्म को मानने के लिए उनके अनुयायियों पर जज़िया जैसे टैक्स लगा दिए गए; और स्वजनों पर हमला करने के लिए धर्म छिने स्वजनों का भी इस्तेमाल किया गया; तब से ही, इस इलाके में कोई एक दोतरफा पुकार चलाती है, जो चीखती-कराहती है, रोती -गिड़गिड़ाती है, अछताती -पछताती है- और कभी अपने भाई को ढूंढती है, कभी अपनी बहन को, कभी अपने मां -बाप को, कभी अपने किसी और स्वजन को ; और जिसे कोई कभी इसलिए नहीं सुनता कि अरे, उसने तो बधने का पानी पी लिया है या कि इसलिए कि अपने घर लौटेंगे तो उस घर में बैठने की अब जगह क्या होगा?

फिल्म ज़फराबाद जौनपुर आख्यान में इस दोतरफा पुकार को भी गिना, गुना और सुना गया है। एक प्रयाण गीत है-

माथा झुका हुआ है
आँखें झुकी पड़ी हैं।
इस पराजय से उठो
इतिहास की यह चाह है।

और, एक और भी गीत है, जो , विभाजन रेखा के दोनों तरफ खड़े लोगों को दर्द में डालता रहता है; उसकी एक बानगी क्षत्रिय समाज के लोगों के बीच से--जिसे कभी बैस गाते हैं, कभी बिसेन, कभी गौतम, कभी कोई और ; और जो कभी बिंदवल के श्योराज सिंह से बात करती है, कभी मेहनगर के अभिमान राय और विक्रमजीत से , कभी मंझौली के बिसेनों से, कभी फतेहपुर के गौतमाना राजपूतों से, और कभी हसनपुर के तिलकधारी राजाओं से। जो पूछती है हुआ क्या? और हार जाते हो किससे? किस कारण ? इस गीत में यह सवाल भी है कि आजादी के बाद जब छतारी के नवाब अपने स्वजनों के बीच लौट कर आये तो उनके साथ क्या सुलूक किया गया? सवाल यह भी है जिन्ना के पिता का मछली बेचना स्वीकार नहीं हुआ लेकिन देश का बंट जाना स्वीकार हो गया?

यह गीत है-

श्योराज सिंह श्योराज सिंह ये क्या हुआ
मुहब्बत की मजलिस मरम खो गया


स्वजनों से संवाद और जवाहर से बात - तुम न ये करते तो क्या करते ?

हम अवध के नवाब शुजाउद्दौला की बेगम , बहू बेगम के विश्वासपात्र रहे जवाहर अली खान की दास्तान भी पेश कर रहे हैं-

``उदार कहे जानेवाले अवध राज्य में भी स्थिति यह थी कि वे ख्वाजासरा ( हिजड़े) उन लोगों से बनाते थे जो विद्रोह करते थे। आदमियों को मार दिया जाता, औरतों को गुलाम बना लिया जाता और बच्चों को हिजड़ा बना दिया जाता और उन्हें हरम की देखरेख में लगा दिया जाता। जवाहिर अली उनमें से एक था। खैराबाद ( सीतापुर) के राजपूत राजा ने प्रशासक मुहम्मद अली खान को मालगुजारी देने से मना कर दिया। मुहम्मद अली खान ने खैराबाद पर हमला किया। हिन्दू राजा की हार हुई। मुस्लिम इतिहासकार फैज बख्श ने तारीख फरहबख्श में लिखा है- अली खान ने सैकड़ों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया। औरतों और बच्चों को बंदी बनाया और कई लड़कों को बधिया करके हिजड़ा बना दिया। जवाहिर अली भी उनमें से एक था। उसे हिजड़े के रूप में अली की सेवा में ले लिया गया। इन हिजड़ों को शिया बनाया गया, उन्हें मुस्लिम नाम दिए गए और इस्लाम की शिक्षा भी दी गयी। अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने मुहम्मद अली से कई हिजड़े खुद ले लिए, जिनमें जवाहिर अली भी था। वह उनकी फारसी पत्नी बहू बेगम के अंतःपुर की देखरेख में लगा दिया गया। बहू बेगम की सेवा में कई हिन्दू हिजड़े थे। जवाहिर अली बहू बेगम की जागीर की देखरेख करता था। 1779 में सूफी पीरों और शिया मौलवियों के बीच फैज़ाबाद में हुए दंगे में जवाहिर ने मौलवी मुहम्मद मुनीर का साथ दिया। सैनिक भेजे। ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों ने १७८१ में बहू बेगम को गिरफ्तार किया तो खजाने का पता लगाने के लिए उनके हिजड़ों को सताया। जवाहर अली भी उनमें से एक था। नेपाल के बुटवल से लेकर गंगा किनारे तक उसका असर था। उसके पास १०,००० घुड़सवार और पैदल सेना थी। लेकिन , इतना विनम्र था जवाहर कि जैसे गूंगा हो। वह कभी खुद मूर्तियां तोड़ने लगता। कभी मजमा लगवा कर सबको सफेद वस्त्र पहनाता, उनसे दीन -दीन का नारा लगवाता। कभी साहित्य में डूब जाता।

फिल्म में इतिहासकार कहता है-

तुम्हारा दर्द समझता हूं जवाहर
तुम न ये करते तो क्या करते?
तुम न ये करते तो क्या करते ?
तुम न ये करते तो क्या करते ?

और यह सवाल भी पूछता है कि हिन्दू और मुस्लमान साथ नहीं रह सकते का नारा लगाने वाला महमूद गज़नवी का सिपहसालार अल बेरुनी कहीं वही शक्श तो नहीं है, जिसे वेद श्री कह के भृगु वंश में गिना जाता है ? caption १. मेहनगर (आजमगढ़) का किला कैप्शन २ ;; राजा सलेमपुर की हवेली कैप्शन ३ ; तिलकधारी राजा हसनपुर का महल कैप्शन ४. पिछली शताब्दी में जौनपुर में होने वाली क्षत्रिय एकीकरण की कोशिशों का केंद्र रहा सिंगरामऊ का राज परिवार।