महाभारत युद्ध के बाद भी नहीं खत्म हुआ महाभारत युद्ध /
जौनपुर में कर्ण पुत्रों की भी रही सत्ता?

फिल्म ज़फराबाद-जौनपुर आख्यान फिल्म के लिए किये गए शोध और अध्ययन से यह बात सामने आ रही है कि महाभारत युद्ध के बाद भी महाभारत कालीन शक्तियां एक-दूसरे से घात-प्रतिघात करती रहीं, और उनमें से कइयों ने भारत के मध्यकालीन इतिहास को प्रभावित किया। इनमें धृतराष्ट्र के सारथी अधीरथ का वंश भी रहा, और कहते हैं कि पूर्वांचल में तो कर्ण के बेटों की भी सत्ता उभरी और उन्होंने दिल्ली तक धावा बोला। ईरान का सेल्जुक साम्राज्य द्रुपद के वंशजों की याद दिलाता है। ओघुज तुर्क तो अग्निकुंड से ही निकले कहे जाते हैं। श्याम रंग उनकी पहचान बन गया है।

भगवान श्री कृष्ण ने बहुत विनम्रता से गांधारी का श्राप स्वीकार कर लिया था, और यादवों के वंश नाश के बाद पुराण सत्ता के बदलाव को बहुत खूबसूरत ढंग से दिखाते हैं- परिजनों के मारे जाने के बाद कृष्ण और बलराम वन में आते हैं। कृष्ण थोड़ी देर के लिए कहीं और चले जाते हैं। लौट कर आते हैं तो देखते हैं कि बलराम अपनी जगह पर नहीं हैं, बल्कि उनकी जगह से एक सहस्र फण सांप रेंगते हुए समुद्र की ओर जा रहा है। यह बलराम की सत्ता का अखमनी साम्राज्य में बदलाव जैसा लगता है। और शायद कृष्ण को मारने वाले पापी बहेलिए ने भी अर्सासिड साम्राज्य खड़ा किया।

गजनी और गौर शासकों की दुश्मनी भी पुरानी थी। उसमें जमदग्नि नंदन परशुराम और कार्तवीर्य अर्जुन के बीचे हुए संग्राम की परछाईं डोलती है। तुगलक, खिलजी, मुगल , सूर, लोदी , सैयद, ममलूक -- मध्यकालीन भारत के लिए कोई भी अनजाना नहीं था। इन सभी ताकतों ने महाभारत के युद्ध में भी हिस्सा लिया था। ज़फराबाद और जौनपुर को एक बार ज़फर और फिरोज़ तुगलक ने तोड़ा तो दूसरी बार ज़फर और फिरोज़ से दुश्मनी निकालते हुए सिकंदर लोदी ने तोड़ा।

महाभारत युद्ध में कर्ण के आठ बेटे मारे गए थे। केवल एक बचा था वृषकेतु, जिसे युद्ध के बाद अर्जुन ने संरक्षण दिया था। कर्ण ने वृषकेतु को ब्रह्मास्त्र चलाना भी सिखाया था लेकिन श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद वृषकेतु को किसी और को ब्रह्मास्त्र सिखाने से मना किया। वृषकेतु को पहले अंग और बाद में इंद्रप्रस्थ का राजा बनाया गया। परीक्षित से बड़ा होने पर भी उन्हें पांडवों का उत्तराधिकार इसलिए नहीं मिला क्योंकि कर्ण का जन्म कुंती और पाण्डु के विवाह से पहले हुआ था, इसलिए कर्ण पाण्डु के वंशज नहीं कहे जा सकते थे। कहते हैं कर्ण की तरह ही अंतिम प्रहार के वक्त वृषकेतु के उत्तराधिकारियों का भी रथ का पहिया `धंस' गया।