तारा, काली और दस महाविद्याओं की पहचान
ज़फराबाद और जौनपुर दोनों भगवती तारा के स्थान रहे हैं। जिनकी दूर-दूर तक पूजा होती थी। आठों हिन्दू तारा सम्भवतः उस धाम में विराजती थीं जिसे अटाला मस्जिद में बदल दिया गया। बौद्ध ताराएं जफराबाद के बौद्ध कालीन विश्वविद्यालय या उसके आस-पास कहीं स्थापित रही होंगी। बंगाल के तारापीठ को लेकर ख्याति तो है कि ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने वहां हिन्दू और बौद्ध ताराओं को एक किया। लेकिन एकीकरण का वह काम ज़फराबाद और जौनपुर में भी हुआ होगा। इक्ष्वाकु वंश और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ का मुख्य स्थान अवध ही है। कहते हैं, भगवान राम ने रावण के वध के पहले शक्ति की देवी के रूप में भगवती तारा की ही पूजा की थी। हो सकता है, बंगाल के पाल राजाओं ने तारा पूजा ज़फराबाद और जौनपुर से ही ली हो, और जौनपुर के तारा मंदिर को मस्जिद में बदल दिए जाने के बाद बंगाल में तारा पूजा ने जोर पकड़ा हो। फिर तो शयामा संगीत की एक परंपरा ही शुरू हो गयी, जिससे रवींद्र नाथ ठाकुर, काज़ी नज़रुल इस्लाम , बामा खेपा, रामप्रसाद सेन और बंगाल के अनेक कवि जुड़े।
भगवती तारा का मंत्र है- ॐ तारे तुत्तारे तुरे सोहा। तारा इश्तर (Ishtar) और तुत्तारे अस्तरते ( astarte, ashtoreth) जैसी दीखती हैं। और तुरे बौद्ध तारा हैं -- जो पूरे सिल्क रूट पर अलग-अलग रूपों में फैली हुई हैं।
हिन्दू तारा दस महाविद्याओं की देवी हैं तो बौद्ध तारा प्रबुद्धि, बुद्धिमत्ता और संवेदना की देवी हैं। महायान शाखा में उन्हें स्त्री बोधिसत्व और वज्रयान में स्त्री बुद्ध के रूप में देखा जाता है। वे मुक्ति की जननी हैं। कार्य और उपलब्धि के क्षेत्र में सफलता की द्योतक हैं। वे इष्टदेवी हैं जिनका करुणा, मैत्री और शून्यता जैसे सद्गुणों को पाने के लिए ध्यान किया जाता है। वे उद्धारकर्ता हैं, जो दुखी प्राणियों की पुकार सुनती हैं, और जन्म-जन्म के बंधनों को काट देती हैं।
उनके बोधिसत्व बनने की कथा स्त्री साधकों के लिए बड़ी आकर्षक है। परम पावन दलाई लामा ने तो इस घटना को एक सशक्त नारीवादी आंदोलन कहा है। कथा यह है कि बहुत पहले एक राजकुमारी थीं येशे द्यावा। येशे द्यावा यानी द्यावा पृथ्वी पर जो पहला चांद निकलता है वह। खूबसूरत और भरपूर। येशे द्यावा उस समय की व्यवस्था के बुद्ध को वर्षों प्रसाद चढ़ाती रहीं। जिन्होंने प्रसन्न होकर उन्हें बोधिचित्त पाने का ज्ञान दिया। उस समय कुछ भिक्षुओं ने येशे द्यावा को सुझाव दिया कि अब आगे की प्रगति के लिए उन्हें पुरुष के रूप में जन्म लेने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। येशे द्यावा ने मना कर दिया, कहा, मुक्ति पाने और मुक्ति का प्रयास करने में स्त्री और पुरुष होने का कोई भेद नहीं हो सकता। मैं हर जन्म में स्त्री बोधिसत्व ही रहूंगी, और बुद्ध भी बनी तो भी स्त्री ही रहूंगी।
और उन्होंने स्त्री क्वे रूप में ही बुद्धत्व पाया।
फिल्म में आठों प्रमुख हिन्दू ताराओं और बौद्ध धर्म की सूर्यगुप्त परंपरा की २१ ताराओं को उनकी पूजा की असल जगह और उनके मूल स्वरूप की पहचान करके प्रस्तुत किया जा रहा है। यह हिन्दू और बौद्ध दुनिया के लिए फिल्म ज़फराबाद जौनपुर आख्यान की एक बड़ी भेंट होगी। उनके संगी अक्षोभ्य भैरव हमें सुदूर इबेरिया में प्रशांत तट पर मिले हैं।
दस महाविद्याओं और जगदम्बा काली के विभिन्न रूपों के भी मूल स्थानों और उनके मूल स्वरूप की पहचान की गयी है। जिसकी प्रस्तुति सनातन धर्म के लिए बड़ी महत्वपूर्ण होगी।