ज़फराबाद जौनपुर शर्की सल्तनत के दौरान सूफी मत के बड़े केंद्र रहे हैं। कहा जाता है कि शर्की सुलतान इब्राहीम शाह के जमाने में ईद के दिन यहां सूफी संतों की १४०० से अधिक पालखियां निकलती थीं। ज़फराबाद में सूफी संतों की इतनी ज्यादा कब्र और मज़ार थीं कि ताकीद की जाती थी कि वहां नंगे पांव ही चलना चाहिए।
लेकिन क्या दरगाहें उन्हीं हालात में हैं, जैसी पहले थीं? या कि अब वे गुजरे जमाने की बातें हैं? हम तफसील से चर्चा कर रहे हैं।
साथ ही हाज़ी हरमन और ज़फराबाद की दूसरी दरगाहों का भी जिक्र। हज़रत मखदमू शेख सदरूददीन चिरागे हिन्द हाज़ी हरमन की दरगाह गरीबों के लिए मक्का मदीना की तरह है। मान्यता है कि बकरीद के एक दिन पहले इस दरगाह पर पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज मक्का में पढ़ी गयी नमाज के बराबर शबाब देती है। उस दिन हजारों की संख्या में ज़ायरीन यहां आकर नमाज अदा करते हैं। हाज़ी हरमैन की दरगाह में दूसरी भी कई मजारे हैं. जिन्हें लोग बाग नमाज के बाद चूमते हैं और दुआ भी मांगते हैं।