अरब की धरती से हरये परमात्मने

अल्लाह का नाम पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) ने नहीं दिया। यह नाम अरब में पहले से इस्तेमाल हो रहा था। उन्होंने उस नाम को अपनाया। और, इन हरये परमात्मने से सनातन धर्म का भी गहरा जुड़ाव रहा है, रक्षा मंत्र है--कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।

काशी और मक्का दोनों अविमुक्त क्षेत्र कहे गए हैं। और दोनों का शिव तत्व से गहरा जुड़ाव रहा है। नज़्द था त्रिनेत्र शिव की जगह। ताइफ़ में विराजते रहे होंगे त्रयम्बक। जेद्दाह में महेश। रियाद तो रुद्रवाह है ही। और अल हासा में प्रभू ने वह मिट्टी सानी जिससे उन्होंने पहले इंसान को गढ़ा। अरब का हेजाज़ क्षेत्र राजा अश्वपति का क्षेत्र था। घोड़े सबसे पहले अरब में ही साधे गए। और सावित्री-सत्यवान का किस्सा भी अरब में ही बना। हिजाब का चलन सावित्री से ही शुरू हुआ। हिन्दू धर्म में वट सावित्री की पूजा का बहुत सुन्दर विधान है, जिसके अर्थ बहुत मंतव्य भरे हैं- --``वट वृक्ष की जड़ में जल डालें। फूल-धूप और मिठाई से पूजा करें। कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं। सूत तने में लपेटते जाएं। उसके बाद ७ बार परिक्रमा करें। हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनें। फिर भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें.''

काबा की हज़रत अब्राहम से जुड़ी कथाएं भी हैं, और पुराणों ने भी संभवतः इस स्थान को स्थाणु तीर्थ के रूप में दर्ज किया है, जहां ब्रह्मा की काया स्त्री और पुरुष दो भागों में बंटी , जिससे मैथुनी सृष्टि पैदा हुई। यहां वापी के जल से इलाज के लिए पृथु नराधम वेन को भी लाये। और उसी कारण से कुरुवंश के प्रतापी राजा शांतनु के बड़े भाई देवापि भी यहां आये। जिन्हें बीमारी की वजह से राज्य नहीं मिला था। वे यहां आये और फिर यहीं के हो गए।

इतिहास को हम कई स्तरों पर जांच रहे हैं। अल गज़ाली हमें भृगुनन्दन की याद दिलाते हैं। मंसूर आर्तिषेण की। और अबू हनीफा कम्बोज औपमन्यव की। जिलानी तो संजीवनी विद्या सीख जाने वाले बृहस्पति पुत्र कच के ही वंश से लगते हैं।

इतिहास गुंथा हुआ है। बहुत कुछ साझा और मिला-जुला। हम जानेंगे कहां तक फैला कुरु वंश। और कहां तक फैला भरत वंश। और विद्येश्वर संहिता क्या है, और कौन है लिंग पुराण का ज्ञाता। कोशिश बहुत कुछ जानने और जनाने की है। भारत में श्रृंगेरी मठ के आचार्य और अरब में पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) तकरीबन एक ही समय में धर्म प्रचार से जुड़े। यह बहुत संभव है कि वे एक-दूसरे से अनजान न रहे हों। इस्लाम को बचाने के लिए पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) ने मेंहदी के आने की भविष्यवाणी की। तो कौन था वह मेंहदी, जो इस्लाम का रक्षक माना गया ? एक सज्जन ने जौनपुर से भी दावा किया था कि वे ही मेंहदी हैं।

धर्म-अध्यात्म और इंसानी रिश्तों को लेकर फिल्म ज़फराबाद जौनपुर आख्यान में कई बातें बहुत नायाब होंगी।