सिंधु घाटी सभ्यता के नतीजों को जांचने की मांग
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के अभी हाल में ही सौ साल पूरे हुए हैं। फिल्म ज़फराबाद जौनपुर आख्यान सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के नतीजों को भारतीय वांग्मय से मिला कर देखने की मांग करती है। भारतीय वांग्मय से मिला कर देखा गया होता तो हड़प्पा उन ऋषि का स्थान मिलता जिन्हें पाण्डु ने हिरन बन कर विहार करते समय मार दिया था। और मोहनजोदड़ो वह स्थान निकलता जहां जयद्रथ का सिर उनके वृद्ध पिता वृद्धक्षत्र की गोद में गिरा था, और सहस्रों खण्डों में बंट गया था। फिर मेहरगढ़ उस स्थान के रूप में सामने आता, जहां राजा भरत की रानियों ने अपने बेटों को जहर देकर मार दिया था। हेरात तब राजा भरत की राजधानी और अर्चोसिया उनके बेटे भरद्वाज का राज्य क्षेत्र निकलता। और फिर, ईरान में हरि का तथा अरब में हर का बोध निकल आता।
अचरज नहीं, तब बहरीन स्वर्ग का वह बाग निकल आता, जहां से आदम और ईव निकाले गए। शत्त-अल-अरब पुराणों का बिंदु सरोवर निकल आता और अबादान वह क्षेत्र निकल आता जहां स्वयम्भुव मनु ने विश्राम लिया और जहां से यज्ञ पुरुष ने शासन किया। पारसियों को लेकर भी तब इतनी मशक्कत नहीं होती। उनके नाम में पृथु वैन्य की ध्वनि है। यानी पृथु के लोग। पृथु के नाम पर धरती का नाम पृथ्वी पड़ा है। पृथु को धरती का पहला राजा कहा गया है।
पुराण कहते हैं-`` पृथु के शासनकाल से पहले कोई खेती नहीं थी, कोई चारागाह नहीं था, कोई कृषि नहीं थी, व्यापारियों के लिए कोई राज मार्ग नहीं था। सभी सभ्यताएं पृथु के शासन में उभरीं। पृथु ने पहाड़ों को समतल किया और गांवों की स्थापना की, जिन्हें उनकी प्रजा ने बसाया। पृथु ने स्वायंभुव मनु को बछड़ा बनाकर गौ -रूप पृथ्वी का दूध दुहा , तथा मानवता के कल्याण के लिए उससे सभी वनस्पतियां और अन्न ग्रहण किया। पृथ्वी को जीवन प्रदान करके तथा उसका रक्षक बनकर, पृथु पृथ्वी के पिता बन गए तथा पृथ्वी ने अपना पितृनाम `पृथ्वी' स्वीकार किया।''
पसारगड़े तब पृथु की राजधानी निकल आती। थोड़ा और आगे चलते तो इराक के कूफा में वह कुआं मिल जाता जिस कुएं में राजा सत्यव्रत ने वह मछली डाली थी , जिसका आकार बढ़ता गया, और जिसकी सींग से नाव को बांध कर वे (मत्स्य मनु) जल प्रलय से बचे थे। थोड़ा और आगे, तब हीबर / ईबर में स्वयम्भुव मनु के बेटे प्रियव्रत के दर्शन हो जाते। उससे आगे अब्राहम में परब्रह्म के उपासक ब्रह्मसखा मिलते।
फिल्म में सिंधु घाटी सभ्यता की विवेचना करते हुए यह कहा गया है कि भारतीय पुरातत्व के तत्कालीन निदेशक जॉन मार्शल ने खुदाई से प्राप्त नतीजों का भारतीय वांग्मय से मिलान नहीं किया। उन्होंने एक नयी सभ्यता खोजने का दावा पेश कर दिया। इससे भारतीय इतिहास का विखंडन हो गया। जिसका दुष्परिणाम जफराबाद और जौनपुर जैसी जगहों को भुगतना पड़ा। इन जगहों के इतिहास और पुरातत्व को लेकर हो सकनेवाली जांच की धार भी कुंद पड़ गयी और हो सकने वाली गवेषणा का नजरिया भी बदल गया।
फिल्म भारत में सरस्वती खोज लेने के हठ को भी अनुचित करार देती है।