सामाजिक संवाद के प्रयास
पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने पिछले कुछ वर्षों में समाज को जोड़ने और कुरीतियों को कम करने के अनथक प्रयास किये हैं। कल्याण के बिड़ला कॉलेज में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए हुई क्षत्रियों की बैठक, मुंबई विश्वविद्यालय के कालीना कैंपस में हुई हिंदी और अहिन्दीभाषियों को जोड़ने की बैठक, कांदिवली के आंबेडकर विद्यालय में हुई सरहदों के पार एक हिन्दुस्तान को लेकर हुई सभा और चेम्बूर के आर माल में हिन्दू और मुस्लिम समाज के बीच संवाद स्थापित करने की जरूरत को लेकसर हुई बैठक --अपनी विचारशीलता को लेकर उद्धृत किये जानेवाले कार्यक्रम हैं। प्रस्तुत है इनमें से दो कार्यक्रमों की मीडिया रिपोर्ट की यह बानगी-
सामाजिक कुरीतियों को कैसे दूर करें?
विमर्श/ २९ जनवरी २०१२
बिड़ला कॉलेज सभागार, कल्याण
वे सभी, जो अपने को क्षत्रिय\राजपूत मानते हैं, क्षत्रिय\राजपूत मूल्यों, मानकों और आदर्शों में विश्वास करते हैं; चाहते हैं कि क्षात्र-धर्म समाज, राष्ट्र और देश को निरंतर समुन्नत और संपुष्ट करे; शाश्वत और सदैव हो ; सबको समाहित करे और सबमें प्रवाहित हो; जिस गंगा-श्री में अनेकानेक जलधाराएं मिल कर अठखेलियां खेलें वे सभी एक बड़ी क्षत्रिय बिरादरी के हिस्से हैं . इस बिरादरी में उन सबका स्वागत है.''--- महाराष्ट्र के पूर्व संयुक्त प्रमुख सचिव श्री ए पी सिन्हा, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त श्री एम एन सिंह, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, महाराष्ट्र के अध्यक्ष अधिवक्ता श्री शशिकांत पवार, उपाध्यक्ष श्री जगतवीर सिंह सिसोदिया, महामंत्री श्री प्रेमपाल सिंह पुंढीर, संयुक्त महामंत्री श्री उदयवीर सिंह जादौन, कोषाध्यक्ष श्री प्रह्लाद सिंह शेखावत, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष श्री कुंवर हरिवंश सिंह, अखिल भारतीय विश्वविद्यालय शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष डॉ आर बी सिंह, मुंबई के सुप्रसिद्ध उत्तर भारतीय राजनेता श्री बी एन सिंह, श्री रामबख्श सिंह और श्री जय प्रकाश सिंह , हिंदी ब्लिट्ज के पूर्व मुख्य संवाददाता श्री प्रीतम कुमार सिंह त्यागी, उत्तर भारतीय मित्र मंडल के अध्यक्ष श्री के एन सिंह, क्षत्रिय कल्याण परिषद के अध्यक्ष डॉ दौलत सिंह पालीवाल, क्षत्रिय सेवा समाज के अध्यक्ष श्री धर्मं राज सिंह, महाराणा प्रताप बटालियन के अध्यक्ष श्री अजय सिंह सेंगर, डीप एजुकेशनल ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री शशि सिंह आदि द्वारा बिड़ला कॉलेज सभागार, कल्याण, महाराष्ट्र में क्षत्रियों का आत्मबोध क्या हो विषय पर आयोजित महासभा में २९ जनवरी, २०१२ को यह प्रस्ताव पारित किया गया।
प्रस्ताव को राजस्थान राजपूत परिषद (अध्यक्ष श्री रतन सिंह राठौड़, कार्याध्यक्ष श्री राजेंद्र सिंह शेखावत दाता, महामंत्री श्री रघुनाथ सिंह सैराना), मराठा महासंघ, अखिल भारतीय खत्री महासभा, महाराष्ट्र (अध्यक्ष श्री भोलानाथ मेहरोत्रा) का पूर्ण समर्थन था. अखिल भारतीय कूर्मि क्षत्रिय महासभा, गुजरात क्षत्रिय महासभा , पंजाब राजपूत एसोसिएशन, परदेशी राजपूत सभा, वनमाली क्षत्रिय संघ, मुंबई वन्नियार संघम के अनेक महत्वपूर्ण पदाधिकारियों ने भी इसकी संस्तुति की। यह महासभा समतामूलक समाज बनाने की दिशा में अशुद्धियों को छानने की प्रक्रिया में आयोजित की गयी थी। सभा का आयोजन पू वि प्र ने किया था।
हिंदी-अहिन्दी समाज जोड़ने का प्रयास
२४ सितंबर २०१३, मुंबई विश्वविद्यालय , कालीना कैंपस।
एक बेहतर दुनिया और समाज के लिए हमें एक-दूसरे के सुख-दुख, रहन-सहन, रीति-रिवाज, तौर-तरीके को समझना और उनका ख्याल रखना होगा; एक-दूसरे की जरूरतों, चिंता और सरोकार की क़द्र करनी होगी ; और अपने आचार-विचार, व्यवहार, सोच, समझ, नीति और जीवन दर्शन को एक साझा, सम्मिलित , समावेशी ( इंक्लूसिव) रूप देना होगा। हमें समझना होगा कि सूरज की किरणें भी सात रंगों से बनी हैं। समाजों के बीच की बात हो, राज्यों के बीच की बात हो, पंथों और सम्प्रदायों के बीच की बात हो, या राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सोच और समझ की बात हो, समाधान के सूत्र समावेश से ही निकलेंगे, दूसरा कोई रास्ता नहीं है।
रविवार को मुंबई विश्वविद्यालय, कालीना कैंपस के इंडियन कौंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के कांफ्रेंस रूम में पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित एक विचार-विमर्श में मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और राज्यसभा सांसद डॉ भालचंद्र मुणगेकर, राज्य सभा सांसद श्री देवी प्रसाद त्रिपाठी, मुंबई विभागीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष प्रो. जनार्दन चांदुरकर, सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ अभय पेठे, पूर्व मंत्री श्री चंद्रकांत त्रिपाठी , सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ आर बी सिंह, उद्योगपति श्री जयेंद्र सालगांवकर, अंजुमन इस्लाम के रिसर्च निदेशक श्री शमीम तारिक जैसे जाने-माने व्यक्तित्वों ने यह निष्कर्ष दिया। वे महाराष्ट्र के हिंदी जन आपस में ज्यादा बेहतर ढंग से कैसे जुड़ें, स्थानीय लोगों और संस्कृतियों से ज्यादा बेहतर सम्बन्ध कैसे बनायें, और दूसरे हिंदी भाषी राज्यों के लोगों से भी बेहतर ढंग से कैसे जुड़ें , इस सन्दर्भ में बातचीत कर रहे थे। विमर्श में इस बात पर जोर दिया गया कि वोट और सुविधा की राजनीति के बदले, सोच, विचार और समझ की, बुद्धि और विवेक की राजनीति को महत्व देने की जरूरत है। बातचीत में समाज के विभिन्न वर्गों से २५० से अधिक जाने-माने लोगों ने शिरकत की।
कार्यक्रम की शुरुआत ज्ञानेश्वरी पर पुष्प अर्पित करके शिवाजी महाराज पर लिखे कवि भूषण के कवित्त पाठ से की गयी।
कार्यक्रम की प्रस्तावना करते हुए पत्रकार ओम प्रकाश ने इस बात पर अफसोस जताया कि पिछले कुछ सालों में संसाधनों और सत्तावाले लोगों ने समाज के किये कामों को भी अपनी व्यक्तिगत संपत्ति बना लिया है। वे समाज की आवाज के भी स्वघोषित ठेकेदार हो गए हैं। उन्होंने समाज की वाणी छीन ली है। श्री ओम प्रकाश ने कहा कि हमारा समाज इतना विवश, इतना पर-वश कभी नहीं हुआ था। उसे इस जबरन कब्ज़े से मुक्ति की तलाश करनी होगी।
विमर्श का विषय प्रवर्तन करते हुए नगरसेवक श्री शिवजी सिंह ने कहा कि राजनीति में ज्ञान, समाज धर्म, निष्ठा और विश्वसनीयता को भी शायद बार-बार ज़माने की जरूरत होती है। समाज को इस काम को भी बार-बार करते रहना होगा। उन्होंने कहा कि राजनीति में जैसे-जैसे कारोबार और व्यापार बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे नीतियां और तौर-तरीके भी कारोबार और व्यापार से प्रभावित होने लगे हैं । लेकिन क्या धंधा है, और क्या समाज; इसे जानना होगा।
पूर्व मंत्री श्री चंद्रकांत त्रिपाठी ने कहा कि वोट की राजनीति इस तरह हावी हुई है कि राष्ट्रीय चेतना ही जैसे हाशिए पर चली गयी है ।लोग भी नागरिक के बदले वोटर बन गए हैं , लिहाजा वोट खोजने वाले लोग उन्हें रोज-ब-रोज वोटर ही बनाते जा रहे हैं। इस दुष्चक्र को तोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी जन के लिए यह संदेश है कि आप जिस जगह रहते, बसते हैं, वहां के रीति-रिवाज, भाषा-बोली, संस्कार, सरोकार --कितना खूबसूरत होगा कि वे सभी आपके भी अपने हों ; और उन सभी में आपकी भी सुगंध हो। उन्होंने कहा कि कोई मुंबई या कोलकता की बात नहीं है, जो भी समाज और समुदाय जहां हैं , उन्हें आपस में नथना -जुड़ना होगा, यही राष्ट्र धर्म है, और यही समाज के बुनने का हजारों साल से चला आ रहा तौर-तरीका भी है।
अंजुमन-इस्लाम के रिसर्च निदेशक श्री शमीम तारिक ने कहा कि साझेपने की विरासत को समझना होगा, और उसे ही विरासत बनाना होगा । बहुत भावुक स्वर में उन्होंने कहा कि हम सभी ही तो मिले-जुले होने के भावबोध से बने हैं ।
सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ अभय पेठे ने कहा कि कितना अफसोसनाक है कि सत्ता के सामने सच बोलने की लोगों की न तो जुर्रत बची है, और न ही सत्ता में सच बरदाश्त करने की आदत है । उन्होंने श्री जवाहरलाल नेहरू, श्री यशवंतराव चव्हाण जैसे नेताओं को याद करते हुए कहा कि उनके जमाने में बौद्धिकों और उनके बीच एक रोजमर्रा का संवाद बना रहता था , जबकि आज तो जाति , पांत, संप्रदाय आदि के नाम पर बुद्धिजीवियों को भी बोलने से रोक दिया जाता है। कुछ बोलिए तो तुरंत जाती आदि के चश्मे से कही हुई बात की व्याख्या होने लगती है। यह एक बहुत ही अभद्र स्थिति पैदा हुई है, जिसकी वजह से अब तो बोलने से ही डर लगने लगा है।
राज्यसभा सांसद श्री डी पी त्रिपाठी ने समावेशी राजनीति के सवाल को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने कहा कि संयुक्त महाराष्ट्र का आंदोलन रहा हो या महागुजरात का, उस तरह के आंदोलन अपने स्वत्व की बात करते थे, लेकिन किसी और के स्वत्व का विरोध नहीं करते थे ; वे दूसरे के सत्य और स्वत्व का भी अपने सत्य और स्वत्व की तरह ही आदर करते थे; वे समावेशी आन्दोलन थे । उन्होंने कहा कि आम नागरिक को भी समझना होगा, गांधी जी की बात, कि आप जैसे होते हैं, आपको नेता भी उसी तरह के मिल जाते हैं । तो नेता तो तभी बदलेंगे जब आप बदलना शुरू करेंगे।
मुंबई विभागीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रो जनार्दन चांदुरकर ने लोगों, समूहों और समुदायों के आंतरिक स्थान परिवर्तन (माइग्रेशन) की अत्यंत सुन्दर व्याख्या की। उन्होंने कहा कि लोग औद्योगिक शहरों की ओर रोजगार और अर्थव्यवस्था की तलाश में जाते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि यह बात सबको समझनी होगी कि समाज को बांटने के खेल राजनीतिक दुकानदारी के लिए किये जाते हैं ।
अपने नाम और ख्याति के अनुरूप मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और राज्यसभा सांसद डॉ भालचंद्र मुणगेकर ने संविधान के तहत चलने को राष्ट्र धर्म कहते हुए बहुत मार्मिक सवाल खड़ा किया--उन्होंने पूछा , '' कोई जन्म से ही छोटा-बड़ा कर दिया जाये, अस्पृश्य कर दिया जाए, महिलाओं की आधी आबादी को ही कमतर करार दिया जाए . इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है ? और ऐसा ही चलता रहा तो एक मजबूत समाज और देश कैसे बन सकता है ? '' उन्होंने कहा कि देश के आधे से अधिक गांवों में आज भी अस्पृश्यता बनी हुई है। ऐसा कब तक चलेगा?
उन्होंने आगे भी बहुत मार्मिक सवाल खड़े किये--कहा कि , '' भारत के ईसाई हों या मुसलमान, अधिकांश धर्म परिवर्तन करके ही तो दूसरे धर्म में गए हैं। क्यों? उसकी व्याख्या से हम कब तक कतराते रहेंगे? ''
उन्होंने श्री नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या का सवाल उठाते हुए कहा--'' हत्या को कहा गया कि उन्हें अच्छी मौत मिली है। ''
पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने इस हत्याकांड की सघन जांच की मांग के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू करने की प्रतिबद्धता जताई। विमर्श में कैप्टेन सी डी एन सिंह , अधिवक्ता श्री विजय सिंह, श्री अमरजीत मिश्र , श्री अभिजीत राणे , श्री जलाल आज़मी, श्री उदय प्रताप सिंह, श्री राम जनक सिंह , श्री दिनेश गुप्ता, श्री नसीम सिद्दीकी, श्री कुबेर मौर्या , श्री आनंद गुप्ता, श्री प्रशांत त्रिपाठी, श्री शमीम अंसारी . डॉ दौलत सिंह पालीवाल, श्री राम बख्श सिंह, श्री एन बी सिंह, श्री एस पी यादव , श्री तीर्थ राज सिंह , श्री कृपा शंकर पांडे , श्री अखिलेश सिंह , श्री अरशद अमीर, श्री राजेश सावंत, श्री चन्द्र शेखर, श्री राज कुमार सिंह जैसे लब्ध प्रतिष्ठ व्यक्ति शामिल हुए .
पू वि प्र ने सही संवाद स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयोग किये हैं, और साहस के साथ अपनी बातें सामने रखी हैं। संस्था कई बार महाराष्ट्र के हिंदी भाषियों की मुखर आवाज बनी है। और राजनीतिक नेताओं ने गलतबयानी की है तो उसका समुचित जवाब भी दिया है। साकीनाका में हुए अपराध के एक मामले में एक शिवसेना नेता द्वारा जौनपुर पैटर्न का विवाद खड़ा करने पर जौनपुर संवाद नाम से एक पूरी मीडिया शृंखला ही शुरू की गयी।
यह सरहदों के पार एक हिंदुस्तान कार्यक्रम की भी एक रपट-
सरहदों के पार एक हिन्दुस्तान एकता के लिए कांदिवली प्रस्ताव
आजादी की ६७ वीं वर्षगांठ पर मुंबई के कांदिवली इलाके में एकत्र एक जन सभा ने भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश में ''सरहदों के आर-पार एक ही भारतीय समाज'' होने की संकल्पना को आगे बढ़ाते हुए, इस भारतीय समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक एकता के लिए काम करने का फैसला लिया है। सभा ने कहा कि १९४७ में द्विराष्ट्र सिद्धांत के आधार पर भारत का और भारतीय समाज का विभाजन एक अस्वाभाविक घटना थी। इसे एक परिस्थितिजन्य विवशता के साथ आम अवाम पर थोप दिया गया था।
सभा ने महसूस किया कि स्वाभाविक प्रक्रिया यह होती कि विभाजन की त्रासदी खत्म होने के बाद सरहदों को मिटाने की और भारतीय समाज को एक करने की कोशिशें होतीं, पर कुछ निजी हितों और निहित स्वार्थों ने इस प्रक्रिया को रोका। वे आजादी के ६६ साल बाद भी बाड़े बनाने और खाइयां खोदने में लगे हैं . सभा ने कहा कि ऐसी अ-भारतीय कोशिशों के खिलाफ बेबाक और बेलाग बातचीत होनी चाहिए। कबीर साहब के अंदाज़ में होनी चाहिए। जाति-पांत, पंथ और सम्प्रदाय को परे रख कर होनी चाहिए।
सभा ने महात्मा गाँधी के उस मूलमंत्र को याद किया, जो किन्हीं भी सदियों और परिस्थितियों में याद रखने लायक है, और सबके लिए है-- 'अरे, भगवान से तो डरो, खुदा से डरो, यह क्या कह रहे हो कि हिन्दू और मुसलमान दो परस्पर विरोधी संस्कृतियों के लोग हैं , और दोनों साथ नहीं रह सकते।' सभा ने कहा कि धर्म एक अलग संघटना है ; और धर्म का ढिंढोरा पीटने वालों की राजनीति, उनके स्वार्थ, उनकी वर्चस्व की लड़ाई , उनके प्रचार और प्रसार के मंसूबे, ये सब अलग संघटनाएं हैं, और उन्हें उसी रूप में देखा जाना चाहिए। यह जितना हिन्दू धर्म के लिए सच है, उतना ही इस्लाम के लिए, और उतना ही सिख या ईसाई के लिए . और भारत की जो यह पारदर्शी दृष्टि थी, उसी का नतीजा अल्लामा इकबाल ने गाया था--' यूनान, मिश्र , रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नमो-निशां हमारा . कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए - जमां हमारा। '
सभा ने अगली बैठकों में पूरे एशिया और मध्य पूर्व में आपसी एकता के जो सूत्र और तत्व हैं, उन्हें क्रमिक रूप से संजोने और संभालने के प्रयत्न करने के संकेत दिए हैं . सभा कांदिवली, पश्चिम के गांधी नगर इलाके में स्थित डॉ बी आर अम्बेडकर विद्यालय में आयोजित की गयी थी . इसकी अध्यक्षता श्री अमर बहादुर शुक्ल और संचालन पत्रकार श्री ओमप्रकाश ने किया। 'सरहदों के पार एक हिंदुस्तान' का प्रस्ताव युवा समाजसेवी श्री जय शंकर तिवारी ने रखा। प्रस्ताव की रूपरेखा डॉ बी आर अम्बेडकर विद्यालय के संचालक श्री शिवपूजन यादव ने बनाई। सभा में मुख्य वक्ता थे-- भाजपा नेता श्री आर यू सिंह, शेकाप नेता श्री कुबेर मौर्या, कांग्रेस नेता श्री जय प्रकाश सिंह, उद्योगपति श्री बबन सिंह, राजदेवी विद्यालय के प्राचार्य श्री रमाकांत पासी , स्वामी विवेकानंद स्कूल, जोगेश्वरी के प्राचार्य श्री मूलशंकर सिंह और संत ज्ञानेश्वर विद्यालय के प्राचार्य श्री वसंत चुडासमा। श्री अमीन इदरीसी ने अनुमोदन प्रस्तावना की। सभा का आयोजन पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान और अम्बेडकर विद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। बैठक में एयर कलिंग में फ्लाइट कप्तान रहे श्री सी डी एन सिंह की शिरकत बहुत महत्वपूर्ण रही। एयर कलिंग ने चीन युद्ध के दौरान उत्तर पूर्वी इलाके में सेना के लिए जरूरी साजो-सामान की सप्लाई बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। श्री सिंह युद्ध के बाद जनरल मानेकशॉ के साथ भारतीय सैनिकों के मनोबल बढ़ाने के कार्यक्रमों में भी शामिल थे। .