स्थानीयता को बढ़ावा

Zafarabad Jaunpur Aakhyan

कभी ब्रह्म बाबा जाते हैं? दुर्वासा? या दारुल मुसन्निफीन? बलिया से हैं तो किताबों की अलमारी में सबसे आगे सजें केदारनाथ सिंह की कविताएं

आर्थिक-औद्योगिक गतिविधियों के तौर पर भी, और संस्कृति के तौर पर भी पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देता रहा है। भारतीय भाषाओं, स्थानीय बोलचाल और रहन-सहन को बढ़ावा देना भी हमारे अभियान का हिस्सा रहा है। स्थानीय व्यक्तित्वों और सद्गुणों को भी हम लोग सराहते रहे हैं। देखें २५ सितम्बर, २०२० को जारी की गयी पू वि प्र की यह अपील- 25 september, 2020

माननीय प्रधानमंत्री जी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को क्षेत्रीय और स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करने और नयी शिक्षा नीति के मंतव्यों से जुड़ने को कहा है। काम हुआ, तो यह राष्ट्र निर्माण का एक बड़ा अभियान साबित होगा।

इस निर्देश से अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के लोग अब भारतीय भाषाओं को मजबूत करने और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का जमीनी अभियान शुरू करेंगे। उनसे जुडी क्षिक्षण संस्थाएं अब कम से कम आठवीं तक की शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने का संकल्प लेंगी। और,भाजपा के नेतृत्व की राज्य सरकारें भी रोटी, रोजगार और शिक्षण से जुड़े मसलों पर भारतीय भाषाओं के पक्ष में फैसले लेंगी।

पू वि प्र भारतीय भाषाओं के पक्ष में पहले से अभियान चला रहा है। क्षेत्रीय उत्पादों को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी प्रतिष्ठान पहले से ही --आजमगढ़ से हैं तो अपने ड्रॉइंग रूम में निज़ामबाद की काली मिट्टी की कोई कलाकृति जरूर रखें-- मिर्ज़ापुर से हैं तो ड्राइंग रूम में सामने दीखे चुनार का कोई बरतन--आंबेडकर नगर से हैं तो टांडा का, और मऊ से हैं तो मऊ का हैंडलूम शरीर पर जरूर सजे-- जैसे अभियान चलाता रहा है। प्रतिष्ठान पर्यटन और सांस्कृतिक प्रयोजनों को भी क्षेत्रीय स्तर पर बढ़ाने के लिए- प्रतापगढ़ से हैं तो बेल्हादेवी की तस्वीर या गाज़ीपुर से हैं तो गंगा-गोमती के संगम की तस्वीर आपके बैठके में हो ही-- जौनपुर और गाज़ीपुर जाइए तो इत्र और गुलकंद ढूंढ लीजिए; कभी आंवक और ब्रह्मबाबा भी हो आइए; बैंकाक ही नहीं कभी सुरहा ताल भी घूम आइए , जैसे अभियान चलाता रहा है।

हर क्षेत्र में ऐसे अनेक स्थानीय प्रयोजन हैं, जिनको महत्व देने से उद्योग-धंधे, साहित्य, संस्कृति, रोजी-रोटी आदि अनेक प्रयोजनों का विस्तार हो सकता है। पू वि प्र भाजपा कार्यकर्ताओं से इस तरह के कार्यक्रम चलाने की भी अपील करता है, जैसे कि -- बलिया से हैं तो आपके घर में केदारनाथ सिंह की कविता पुस्तक होनी ही चाहिए। देखिए कितने प्राण से भरी है यह कविता, यह पृथ्वी रहेगी--

मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तन में
रहते हैं दीमक

जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी ज़बान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी

और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा

मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूंगा।

अभियान की एक बानगी देखिए --

आजमगढ़ से हैं ? तो एक छोटी सी मंत्रणा है

(१७ जुलाई, २०१६। )

Zafarabad Jaunpur Aakhyan

परवल वाली मिठाई पसंद है ? दुर्वासा के चीनी के चक्की गट्टे ? गोवर्धन पूजा की खिलौना मिठाइयां ? चावल का अनरसा ? या सारे काज-प्रयोजन पर बंगाली रसगुल्ले और पाउडर का गुलाब जामुन ही छाया हुआ है ?

कभी महुए का ठेकुआ बन जाता है ? दलपूडी ? सनई के फूलों की सब्जी ? मटर की फुनगियों का साग ? मरसा ? करेमुआ ? बांस की गोंफ और लिस्टोरे का अचार ? दुद्धी के फूलों का साग ? भरवां कचौरियां ? चूनी की रोटी ? आलू की भुजिया ? आलू-कुम्हड़े का रसादार ? बथुए का सकपहिता ? या सब पनीर के हवाले है ? कोफ्ता ही भाता है ?

चाइनीज, मुगलई और बर्गर, पिज्ज़ा और मसाला-डोसा चल रहा है ? कोल्ड ड्रिंक ही परसा जा रहा है, या कभी बेल के शरबत, गन्ने के रस की भी बारी आ जाती है ? मिठाई के तौर पर कभी रसियाव भी परसते हैं ? मिट्टी की हांडी में कभी अभी भी सोंधी दाल बन जाती है ? या दम पुख्त में ही मजा आता है ?

पुष्कर या बालाजी जाते हैं, शिरडी ? या कभी-कभार ब्रह्मस्थान के बैकुंठ द्वार, दुर्वासा या भैरव बाबा भी हो आते हैं ? अल्लामा शिब्ली नोमानी को जानने कभी बिंदवल गए हैं? दारुल मुसन्निफीन में कभी झांका है ? हमीदुद्दीन फराही को कभी फरिहा में खोजा है? या मौलाना मोहम्मद फारूक चिरैयाकोटी को याद करते कभी चिरैयाकोट गए हैं ? सीरतुन्नबी क्या है ? पंदहा या कनैला कभी हो आये हैं ? ये केदारनाथ पांडे रामोदर साधु और फिर राहुल कैसे हो गए ? सांकृत्यायन का क्या अर्थ है ? महापंडित के क्या मायने हैं ? मध्य एशिया का इतिहास पढ़ा है ? वोल्गा से गंगा ? कहां से निकलती है तमसा ? और कहां जाकर किसमें विलीन हो जाती है ?

आपके बैठक में निज़ामबाद की ब्लैक पॉटरी का कोई नमूना है ? कोई फूलदान, सुराही, कोई सजावटी सामान, जिसे आप अपनी पहचान से जोड़ते हों, जिसे आप अपने और अपने इलाके की विशिष्टता के तौर पर संजोते और सजाते हों। निजामाबादी कुम्हारी की केतली में कभी चाय छानी है ? खाने की मेज पर कभी वहां की प्लेट या प्यालियां निकाली हैं ? कभी रुक कर इन बरतनों को चावल की भूसी में पकाते और उन पर सरसों के तेल मींजते देखा है ? और चूंकि हम सबने यह कुछ भी नहीं किया है तो यह तो नहीं ही जानते होंगे कि देश में इन बरतनों की कोई पूछ नहीं। सारा कारोबार निर्यात पर ही टिका है, और खत्म होने की कगार पर है। उसी के साथ ही यहां से खत्म हो जाएगा यह कौशल।

औरंगजेब के जमाने में गुजरात के कच्छ से कुछ कुम्हार परिवार यहां आकर बसे थे, और तबसे सुरक्षित चल रही थी उनकी यह कारीगरी। आपको भी लगता होगा कि कौशल विकास का बुनियादी तरीका परंपरागत विशेषताओं और उद्यम और उद्योग के परंपरागत केंद्रों को मज़बूत करना है. लेकिन उसके लिए हमें भी तो अपने को अपने इलाके से जोड़ना होगा, अपनी स्थानीयता को मजबूत करना होगा, अपनी विशिष्टताओं को पहचानना और उन पर गर्व करना होगा। ठीक ? तो निज़ामबाद की ब्लैक पॉटरी कैसे बचे और बढ़े ? हर आजमगढ़ी की पहचान कैसे बने ? विचार तो करना होगा। कल्पना कीजिए, निज़ामबाद पॉटरी का अच्छा-खासा हब बन जाए , कैसे ? मझुई और टौंस का संगम तीर्थ यात्रा और पर्यटन दोनों के काम आये, कैसे ?

महाराष्ट्र में पुणे के इर्द-गिर्द गणेश के ८ मंदिर हैं। अष्टविनायक। इन आठों की एक साथ परिक्रमा होती है। कुछ इस तर्ज़ पर बनाया जाए अष्टआजमगढ़ ? कभी फरिहा, पंदहा , कनैला , बिंदवल , चिरैयाकोट, मिजवां ( कैफी आज़मी का गांव ) , निज़ामबाद ( हरिऔध जी का जन्मस्थान ), डुमरांव ( श्याम नारायण पांडे जी का गांव) , दारुल मुसन्निफीन आदि को मिला कर लेखकों-कवियों की कोई यात्रा हो ? कभी हल्दीघाटी और प्रिय प्रवास का समूह पाठ हो ? राजनीतिक नेतृत्व में भी आजमगढ़ में खूब रहा है। कभी उस विरासत की भी कभी निर्गुण और कभी सगुण चर्चा हो ?

बताएं , कैसे ?