भारतीय भाषाओं को मजबूत करने का अभियान
भारतीय भाषाओं को मजबूत करने और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का अभियान
जब देश के कई राज्यों में भारतीय भाषाओं को कमजोर करने के प्रयत्न हो रहे थे, तब पू वि प्र ने भारतीय भाषाओं को मजबूत करने और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का अभियान चलाया। प्रख्यात लेखिका श्रीमती पुष्पा भारती के नेतृत्व में चलाये गए इस अभियान में लेखक, पत्रकार , भाषाप्रेमी बड़ी संख्या में शामिल हुए। कई विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने भी खुली शिरकत की। नयी शिक्षा नीति बनाते समय भी सरकार के सामने अपनी बातें भी बहुत प्रभावी ढंग से रखी गयीं। हमारी समझ है कि उन बातों का कुछ फल भी निकला। नयी शिक्षा नीति में वे कई मुद्दे शामिल हैं, जिनकी पू वि प्र ने पैरवी की थी।
और, जब शिक्षा नीति ने भारतीय भाषाओं को मज़बूती दी तब, पूविप्र ने उन नीतियों को आगे बढ़ने का भी आह्वान किया - देखिए , २० अगस्त, २०२० को मराठी पत्रकार संघ में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प लेने के लिए जो बुलावा दिया गया, उसका यह मजमून-
हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प लेते हैं
जब राज्य दर राज्य प्रदेश सरकारें केजी स्तर से ही अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बना रही थीं, और इस बात का खुले आम इजहार हो रहा था कि बच्चों के समुचित बढ़ाव और विकास के लिए अंग्रेजी ही एकमात्र रास्ता है, तब नयी शिक्षा नीति में आठवीं तक मातृभाषा में शिक्षा देने की पैरवी करके,केंद्र सरकार ने देश और दुनिया में भारतीय भाषाओं का परचम फहराये जाने की उम्मीद जगा दी है। हमारी कई-कई शास्त्रीय भाषाएं जाने कब से इस नए विहान और नए वितान का इंतजार कर रही थीं। इस भाषा नीति ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने के द्वार भी खोल दिए हैं।
अब बारी हिंदी सेवी संस्थाओं, शैक्षणिक संस्थानों, हिंदी के काम-काज से जुड़े लोगों, कवियों, लेखकों, साहित्यकारों ; पत्रकारों, और सबसे बढ़ कर राज्य सरकारों की है कि वे लोगों में नयी भाषा नीति के अनुसार चल पड़ने का आत्मविश्वास जगायें, और रास्ता ठीक करें। भाषा के मुद्दे पर जब देश में विभाजनकारी राजनीति हो, तब केंद्र सरकार से भारतीय भाषाओं की समृद्धि और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के मामले में इससे अधिक की अपेक्षा करना शायद उचित नहीं होगा। समाज के साथ-साथ जिम्मा राज्य सरकारों को भी उठाना होगा। कुछ शैक्षणिक संस्थाएं मिल कर या कोई एक राज्य सरकार केंद्र द्वारा अनुमोदित भाषा संकल्प को पूरा करने का बीड़ा उठा ले, और सफलता के मानक खड़े कर दे, तो फिर जानिए, राज्य दर राज्य उसी सफलता के दोहराये जाने को कोई रोक नहीं सकेगा। हमारी भाषा पराधीनता की बेड़ियां कुछ वर्षों में ही टूट जाएंगी।
इसके लिए कई स्तरों पर काम करने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में क्या पढ़ाया जा रहा है, हिंदी के प्रचार-प्रसार का काम किस तरह हो रहा है, लेखक और साहित्यकार क्या और किस स्तर का, लिख रहे हैं, दूसरी भारतीय भाषाओं से किस तरह के रिश्ते बनाये जा रहे हैं, त्रिभाषा फार्मूले को लेकर कितनी सजगता और स्पष्टता बरती जा रही है, हिंदी और उसकी जड़ों के बीच किस तरह का आदान-प्रदान हो रहा है, जैसे अनेक विषयों पर भी खुली बात करनी होगी। आइए, बातचीत करें, इसके लिए यह निमंत्रण।
इस सभा में मराठी, गुजराती और उर्दू के लेखक और पत्रकार बड़ी संख्या में शामिल हुए। इस सभा में सभी ने संकल्प लिया कि वे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए काम करेंगे।
उस दिन पुष्पा जी ने अद्भुत आह्वान किया। उन्होंने कहा- ``हमारी भारतीय भाषाएं फूलों का एक गुलदस्ता हैं। हर फूल की अपनी खुशबू है। हमें सभी भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने के प्रयत्न करने चाहिए। हिंदी इन सभी मणियों को एक धागे में पिरोये और सभी की सेवा करे। ``भारतीय भाषाओं की सेवा में हमें तो वह गिलहरी बन जाना है, जो श्रीराम की सेना द्वारा बनाये जा रहे सेतु के पत्थरों के फासले में मिट्टी भर रही थी। हमें पूरे हिंदी जगत को दूसरी भारतीय भाषाओं के लोगों और उनके कामों से जोड़ देना चाहिए। और इस काम को सौ फीसदी समर्पण से करना चाहिए। ``हमने ऐसा किया तो देश खुद हिंदी को स्वीकार करने के लिए आगे बढ़ेगा।''