इलाहाबाद के लड़के
इलाहाबाद के लड़के
इलाहाबाद के ही नहीं होते
वे बलिया, आज़मगढ़, जौनपुर
रायबरेली, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर
या फिर
रीवा, सतना, सीधी
कहीं के भी हो सकते हैं।
रोटियाँ नहीं बेल पाते
इलाहाबाद के लड़के
चावल में पानी का
अन्दाज़ नहीं आता उन्हें
बस चाय, ऑमलेट
और खिचड़ी बनाना आता हैं।
तिवारी जी
जूनियर लड़कों से
चाय के पैसे नहीं देने देते
इसलिए जूनियर लड़कों से बचकर
यादव ढाबे पर देर से पहुंचते हैं
इलाहाबाद के लड़के।
इलाहाबाद के लड़के
मंगलवार को व्रत रखते हैं
पांच रुपए का बूँदी का प्रसाद चढ़ाते हैं
हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के साथ-साथ
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते हैं
कलाई में कलावा
और बाँह पर ताबीज बाँधते हैं।
इलाहाबाद के वही लड़के
जो बड़े हनुमान के मन्दिर पर दिखते हैं
फूल शाह बाबा की
मज़ार पर भी दिख जाते हैं।
कमरे में विवेकानन्द के बगल में
चे ग्वेरा की तस्वीर लगाते हैं
इलाहाबाद के लड़के
कुछ अम्बेडकर की
और कुछ अखिलेश यादव की भी फ़ोटो लगते है।
कपड़े टांगने की कील के पीछे
छाँटकर इतवार के
रंगीन अखबार चिपकाते हैं
इलाहाबाद के लड़के
कील से कपडे निकालते समय
मुस्कुरा देती है पसंदीदा अभिनेत्री।
कामचलाऊ हस्तरेखा जानते हैं
साथ ही थोड़ा अंक ज्योतिष
कुछ कुण्डली भी देख लेते हैं
रत्नों के बारे में कुछ का ज्ञान
हरेक को लहसुनिया
मूंगा या फिरोजा पहना देता है।
न चाहते हुए भी
गाँव के लड़के को
तीन सौ रुपए
उधार देते हैं इलाहाबाद के लड़के
यह सोचकर कि
कभी उन्हें भी ज़रूरत पड़ेगी
जो कि पड़ती ही रहती है
जब-तब।
देर रात तक पढ़ते हैं इलाहाबाद के लड़के
और जब देर से सोकर उठते हैं
तो पाते हैं कि उनकी
इस्तरी की हुई कमीज़ तो
उनका रूम पार्टनर पहन ले गया
रूम पार्टनेर को जमकर गरियाते हैं
इलाहाबाद के लड़के।
शाम ढलते ही कमरे, क्वार्टर या डेरे से
निकल आते हैं
इलाहाबाद के लड़के
और जल्द ही लौट आते हैं
दो अंडे, बड़ी वाली ब्रेड
और हरी मिर्च लेकर।
इलाहाबाद के लगभग हर लड़के के साथ
कमरे पर बड़ा भाई होता है
बड़े भाइयों के साथ छोटा होता है
सगा नहीं तो चचेरा या ममेरा
कुछ नहीं तो बगल के गाँव का
रिश्ते का भाई ही सही।
इलाहाबाद के लड़के
खाना बनाने और खाने तक
श्रम के बंटवारे के मार्क्सवादी
सिद्धांत को मानते हैं
जो छीलता- काटता है
वह पकाता नहीं
जो भूनता- छौंकता है
वह परोसता नहीं।
खा- पी कर सामंतवादी हो जाते हैं
इलाहाबाद के लड़के
सबसे बड़े खाना खाकर
या तो लेटते हैं
या बगल के कमरे में चले जाते हैं
या फिर पान खाने
और छोटे लड़के
जूठे बर्तनों के बीच
खुद को घिरा पाते हैं।
योजना आयोग, वित्त आयोग
लोक सेवा आयोग से लेकर
परमाणु ऊर्जा आयोग के
एक- एक सदस्य तक का नाम जानते हैं
लेकिन मकान मालिक की
भांजी का नाम नहीं जान पाते
पूरी गर्मियों भर
गरमी की छुट्टियों के बाद
वापस लौट जाती हैं
इलाहाबाद की सब
प्रवासी अनामिका चिड़ियाएँ
बड़े लड़के
मार्क्स और कृष्णमूर्ति को
एक साथ पढ़ते हैं
अरविंद को पढ़ते- पढ़ते
डेढ़ साल की नन्ही बिटिया याद आ जाती है
फिर बिटिया की माँ।
जींस वाली लड़कियों से कतराते हैं
इलाहाबाद के लड़के.....
क्योंकि उनमें से ज्यादातर
अंग्रेजी में बतियाती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची इमारत का नाम
जानते हैं इलाहाबाद के लड़के...
लेकिन यह नहीं जान पाते
कि तीन महीने पहले जो
सीढ़ियों पर फिसलकर गिरी
तो अभी तक
बिस्तर पर ही है माँ।
यह भी नहीं जान पाते
इलाहाबाद के लड़के....
कि एक और लड़का
देखकर नकार आया है
उनकी छुटकी को
घर वालों की उम्मीदों की तरह
बढ़ती जाती है
इलाहाबाद के लड़कों की उम्र
सपनों की ऊंचाई से गिरकर
चोट खा बैठते है
इलाहाबाद के लड़के
सफलता कोचिंग में डेढ़ साल पढ़ाकर
एल एल बी में एडमिशन ले लेते हैं
इलाहाबाद के लड़के...
गाँव लौटकर
विधायक जी के प्रतिनिधि
कुशवाहा जी के साथ घूमते हैं
कभी सरपंच के चुनाव की तैयारी करते हैं
कभी ग्रामीण बैंक से क़र्ज़ लेते हैं
मिर्जापुर या सतना में
अंगूर की खेती के लिए
पहले बहन
फिर भतीजी की
शादियाँ निपटाकर
बेटी के लिए
लड़का खोजने निकलते हैं
इलाहाबाद के लड़के.
लड़ते ही रह जाते हैं
उम्र भर
लड़के ही रह जाते हैं
इलाहाबाद के लड़के..?