संस्पर्श और क्रिएटर्स कॉर्नर

मलाड में निकाली गयी साहित्य की पालखी का एक दृश्य

हिंदी साहित्य को प्रतिष्ठित करने के लिए पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने साहित्य की दिंडी और पालखी निकाल कर हिंदी में मराठी साहित्य जैसी परंपरा की शुरुआत की। साथ ही , उसने नए कवियों, लेखकों और पत्रकारों के लिए संस्पर्श जैसे कार्यक्रम किये हैं, जिसमें नवोदित रचनाकारों की कृतियों की समुचित समीक्षा की जाती है। जिससे उन्हें विकास और बढ़ाव का सही संस्पर्श मिले।

कई साहित्यिक सभाओं में क्रिएटर्स कॉर्नर की भी व्यवस्था की गयी। जिसके तहत सभा में कुछ वक्त ऐसा भी निकाला गया जिसमें कोई भी रचनाकार विषय से अलग हट कर स्वतंत्र रूप से किसी विषय पर अपनी बात रख सके; और लोग उसकी बात सुनें, और विचार करें। क्रिएटर्स कॉर्नर का उद्देश्य वैचारिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना और नवोदित रचनाकारों को ऑडियंस देना रहा है। संस्पर्श और क्रिएटर्स कॉर्नर दोनों प्रयोग बहुचर्चित रहे हैं।

संस्पर्श के तहत संध्या यादव की कविताओं की समीक्षा बहुचर्चित रही। समीक्षाः के लिए किस तरह की कविताओं को चुना गया, बानगी का तौर पर संध्या यादव की यह एक कविता देखी जा सकती हैं--

चिनिया के पापा

चिनिया के पापा,
गोड़धरीं।
मजे मे होगे विश्वास है,
वर्ना हमरी सुध ज़रुर लेते।
बीस साल पहले आटा,भेली ,चावल
लेने आते अक्सर,शायद हमारी याद भी,
नये लोगों के बीच पहुँच जाती थी
भीड़ में भी हमरी टेर तुमको सुन जाती थी,
एक ही कारन था चिनिया के पापा
तुम्हरी जेब ढ़ीली , तुम पर चढ़ी जवानी थी
याद है आये थे कब आखिरी बार?
न फागुन,ना बसंत,ना तीज त्योहार ,
पर हमने हर रोज डीह बाबा के यहाँ
दीपक जला हाथ जोड़ा है।
कबहूँ कुछ नहीं माँगा उनसे भी
सब उनको ही तो दिया है।
अम्मा ना रही...बापू भी चले गये
खबर हमने भी भिजवाई थी।
खबर हम तक भी आयी थी,
सौतिनिया संग सात फेरों की खुशी
हमने गुड़धानी बाँट मनायी थी।
हम सच में खुस थे चिनिया के पापा
उहाँ के लायक हम कहाँ थे चिनिया के पापा।
तब हम जवान थे,दरवाजे पर लाठी लिये
बापू, हुक्का गुड़गुड़ाते थे
गाँव के मर्दन को कुत्तों सा दुरियाते थे
घर की दीवारें मजबूत ,दरवाजे भी ताकतवर थे
चार ताले लगा रातों को चिनिया को
छाती से लगा सो जाते थे।
चिनिया पूछती थी" पापा कब आयेंगे?
जवाब होता" तेरे लिये खिलौनै ,कपड़े
जब खरीद पायेंगे"
सालों पहले कहने लगी "नहीं चाहिए हमें
कुछ भी,पापा को बुला लो अम्मा"
अब कुछ नहीं पूछती ,जवान हो गयी है चिनिया
सुनो चिनिया के पापा,
अब दिवारें झर गयी हैं
दरवाजों के उखड़ गये हैं कब्जे
मेरी जवानी उड़ गयी आँखों के काजल संग,
पर बिटिया को अब कौन संभाले?
सुनो,
कुछ नहीं चाहिए हमको तुम्हारे संग
बस आखिरी बार आये थे जब तुम
अपना नथ बेच डिढ़ सो रूपया
जौन तुम्हरी हथेली पर धरा था
बाइस साल का ब्याज जोड़कर भेज देना
ब्याह करना बहुते महंगा हो गया है।
चिनिया को ब्याह दें,
अकेले जनी जो हमने लरकी
उसको भी गंगा पार लगा दें।
तुमसे भीख नहीं ,दिया कर्ज माँगते हैं
चिनिया के नाम के आगे आज भी
तुम्हारा ही नाम लिखाते हैं।
कसम है हमको तुम्हारी,
एक पैसा नहीं खुद पर लगायेंगे।
मरने की खबर भी तुम तक नहीं पहुँचायेंगे
कफन -दफन का काम भी चिनिया से ही
करायेंगे।
खुश रहो सौतिनिया संग
सिंदूर रहे अमर उसका
विधवा हुये सालों पहले
विधवा ही मर जायेंगे।
हमारा दिया करजा भिजवा देना
पैसों के इंतजार में...
तुम्हरी कौनौ नाहीं 
चिनिया की माई.

कार्यक्रमों की संरचना इस निमंत्रण से समझी जा सकती है--

सादर निमंत्रण

संस्पर्श साहित्य और सृजन को साथ और सहयोग भारतीय भाषाओँ की उन्नति और विकास अभिव्यक्ति को अबाधित स्वतंत्रता

११ मई, २०१९
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सभागार, रिलायंस एनर्जी के पास, वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे, सांताक्रुज ( पूर्व) , मुंबई -- ५५
समय : शाम ५. ०० से ८. ३०

कार्यक्रम --

संस्पर्श सारस्वत सम्मान ( पत्रकारिता) , २०१९

समाजोन्मुखी पत्रकारिता के लिए श्री सिद्धार्थ आर्य का सारस्वत सम्मान तथा श्री आदिमूर्ति अय्यर, श्री विद्यारण्य, श्री विद्या भास्कर, श्री भीष्म आर्य और तमिल महाकवि श्री सुब्रह्मण्य भारती द्वारा की गयी हिन्दीसेवा का स्मरण

व उन समस्त अहिन्दीभाषी हिंदीसेवी विद्वानों और मनीषियों का आभार जिन्होंने भारतीय भाषाओँ को जोड़ा और भाषा संस्कार के रूप में राष्ट्रीय चेतना का विस्तार किया

अध्यक्षता : श्री विश्वनाथ सचदेव

आशीर्वचन : श्री मिठाई लाल सिंह ( पूर्व अध्यक्ष, उत्तर भारतीय संघ)

श्री सिद्धार्थ आर्य की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन और सारस्वत अभिनन्दन : श्री कृपाशंकर सिंह , पूर्व गृह राज्य मंत्री , महाराष्ट्र

मुख्य वक्तव्य : पत्रकार- कथाकार-चित्रकार श्री प्रकाश बाल जोशी

सानिध्य : श्री मनमोहन सरल , श्री सुदीप, डॉ. माधुरी छेड़ा, डॉ. रतन कुमार पांडे , डॉ. दौलत सिंह पालीवाल, श्री विमल मिश्र, श्री शिवजी सिंह, श्री आबिद सुरती, श्री फिरोज अशरफ , श्री जय प्रकाश सिंह , श्री आदित्य दुबे ( अध्यक्ष, हिंदी पत्रकार संघ) , श्री दिलीप सिंह ( भरूच), श्री केशव राय, श्री रत्नेश सिंह

सुश्री संध्या यादव की कविताओं की सांगतिक समीक्षा

अध्यक्षता : डॉ. माधुरी छेड़ा

आत्मकथ्य और काव्य प्रस्तुति: सुश्री संध्या यादव

साहित्यिक समीक्षा : श्री सुदीप

शास्त्रीय समीक्षा: श्री आनंद सिंह ( दूरदर्शन)

परिमार्जन : श्री ओम प्रकाश

संस्पर्श: श्री गोपाल शर्मा, श्री ओम प्रकाश तिवारी, श्री अनंत श्रीमाली , श्री राजेंद्र सिंह सेंगर, श्री सलिल सुधाकर, श्री अवनींद्र आशुतोष , श्री आशुतोष सिंह, श्री अजय भट्टाचार्य , श्री गंगा शरण सिंह, श्री राजेश विक्रांत ,श्री अनिल रंजन

हस्तक्षेप : सुश्री सुदर्शना द्विवेदी, श्री कैलाश सेंगर

सांगतिक समीक्षा में सभागार में उपस्थित सुधी जनों द्वारा कवयित्री और समीक्षकों से सवाल-जवाब भी पूछे जा सकेंगे.

आमंत्रित काव्य पाठ

अध्यक्ष : डॉ. रतन कुमार पांडे ( पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय)

सहयोग : डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र ( टीआईएफआर )

आमंत्रित कवि : सुश्री चित्रा देसाई, सुश्री अमृता सिन्हा , श्री अभिषेक चौहान

त्वरित टिप्पणी : डॉ. डी वी शुक्ल , श्री हरीश पाठक, श्री देवमणि पांडेय

क्रिएटर्स कार्नर

शुभारम्भ और संकल्पना : श्री कृपा शंकर सिंह , पूर्व गृह राज्य मंत्री , महाराष्ट्र

अध्यक्ष : श्री सुदीप

सहयोग: श्री रघुबर सिंह

इस बार क्रिएटर्स कार्नर में श्री कृपाशंकर पांडे ( सांताक्रुज), श्री दयाशंकर सिंह ( मुलुंड) , श्री जय शंकर तिवारी ( कांदिवली) , श्री अरशद अमीर सय्यद ( साकी नाका ), श्री अभय राज सिंह ( मीरा रोड), प्रो. बी पी सिंह ( ठाकुर विलेज), श्री राजेश सिंह ( कांदिवली ) यह सवाल उठा रहे हैं कि मनपा स्कूलों में भाषायी शिक्षा `शिक्षण सेवक घोटाले' के कारण कमजोर हुई है. जिसकी उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए। वे इस सन्दर्भ में संस्पर्श और रचनाकारों से की जाने वाली अपेक्षाओं का भी जिक्र करेंगे। इस सन्दर्भ में अधिवक्ता श्री कुंवर सिंह ( मुलुंड) कानूनी स्थितियों की और सुश्री शुभम सिंह आरटीआई आदि के जरिये पूछे जा रहे सवालों की जानकारी देंगे।

क्रिएटर्स कार्नर सभी रचनाकारों, सोच-विचार वाले लोगों और एक्टिविस्ट्स के लिए एक मुक्त स्पेस है। जहां कोई भी बात , विचार, विमर्श, संरचना या कोई भी सामाजिक समस्या बिना किसी रोक-टोक के रखी जा सकती है। ध्येय वाक्य है--आप कहें, हम सुनेंगे। शर्त इतनी है कि एक निश्चित समय सीमा का ध्यान रखा जाए और बात साफ़-सुथरे और मर्यादित ढंग से कही जाए।

अतिथि कवि : श्री हरि वानी

सम्मान व सत्कार : श्री अमर त्रिपाठी

कार्यक्रम संयोजन: पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान

  • श्री राम आसरे सिंह
  • श्री राम विलास सिंह
  • सुश्री वंदना सिंह
  • श्री राजकिशोर तिवारी
  • श्री प्रशांत त्रिपाठी
  • सुश्री अनीता शर्वेश सिंह
  • श्री विजय यादव
  • श्री दीपक यादव
  • श्री अमीन इदरीसी
  • श्री सर्वेश सिंह

संपर्क: ओम प्रकाश

आप कहें, हम सुनेंगे

यदि आपके पास साहित्य, समाज और सृजन से जुड़े कोई सार्थक संवाद, सूचनाएँ, बात, विचार, चिंतन, मनन, शोध, समस्याएं, नयी संरचनाएं आदि सुनाने को हैं, जिनकी जानकारी साहित्य और समाज को होनी चाहिए, तो संस्पर्श के हर कार्यक्रम में एक तिहाई हिस्सा आपकी अभिव्यक्ति के लिए बिना किसी रोक-टोक के खुला है। इसमें तीन से पांच मिनट के भीतर आप संयमित और मर्यादित ढंग से अपनी बात रख सकते हैं. ठीक उसी तरह से जैसे लंदन के हाइड पार्क में स्पीकर्स कार्नर से कोई भी अपनी बात मुक्त रूप से कह सकता है। संस्पर्श में यह सृजनलोक ( क्रिएटर्स कार्नर ) उसी तर्ज़ पर बनाया गया है। उद्देश्य है सृजनात्मकता को, वैचारिकता को, संरचनात्मक स्वतंत्रता को निर्बाध महत्व, स्वीकृति और सम्मान देना। उसके प्रसार और उसकी ग्राह्यता के लिए अनुकूल माहौल बनाना।

११ मई, २०१९, मौलाना आज़ाद सभागार , सांताक्रुज , मुंबई; समय शाम ५ बजे से ८ बजे तक होनेवाले संस्पर्श के कार्यक्रम में इस क्रिएटर्स कार्नर से अपनी बात कहना चाहें तो स्वागत है।

आप कहें, हम सुनेंगे।

हम आपके सृजन में शरीक हैं।