अहिन्दी भाषी हिंदी लेखकों का सम्मान

Zafarabad Jaunpur Aakhyan
Zafarabad Jaunpur Aakhyan आज अखबार के संपादक रहे श्री विद्या भास्कर जी

अहिन्दी भाषी हिंदी लेखकों का सम्मान अंग्रेजियत भगाओ आंदोलन

भारतीय भाषाओं को मजबूत करने का अभियान कई स्तरों पर चला। जिसमें अहिन्दी भाषी हिंदी लेखकों के योगदान को याद करना और उनका सम्मान करना भी शामिल था। ११ मई, २०१९ के एक कार्यक्रम की यह मीडिया रिपोर्ट बहुत कुछ कहती है -

मुंबई, ११ मई, २०१९। प्रख्यात लेखिका श्रीमती पुष्पा भारती ने भारतीय भाषाओं की समृद्धि के लिए एक मज़बूत भारतीय भाषा स्वाभिमान और स्वातंत्र्य आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया है। जिसका लक्ष्य भारतीय भाषाओं को जड़ से सींचना, उन्हें विस्तार देना, उनके आपसी जुड़ाव को मजबूत करना और लोगों को वाणी की वास्तविक आजादी दिलाना है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया है कि हम लोगों पर अभी भी अंग्रेजियत का भूत सवार है , जिसके चलते हम न तो अपनी राष्ट्रीय अस्मिता को मजबूत कर पा रहे हैं, और न ही अपने कामों का समुचित मूल्यांकन कर पा रहे हैं। एक सुनिश्चित भाषायी अस्मिता के बिना हमारी विकास और बढ़ाव की सारी कोशिशें अधूरी रहेंगी।

श्रीमती पुष्पा भारती मौलाना अबुल कलम आज़ाद सभागार , सांताक्रुज, मुंबई में पत्रकार श्री सिद्धार्थ आर्य के सारस्वत अभिनन्दन समारोह में बोल रही थीं। इस समारोह में श्री आर्य के अभिनन्दन के जरिए मुंबई का हिंदी भाषी समाज तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मराठी और बांग्ला के उन विद्वानों और मनीषियों का भी स्मरण और नमन कर रहा था जिन्होंने हिंदी की सेवा और समृद्धि में अविस्मरणीय योगदान दिया है। इस अवसर पर आर्य परिवार से जुड़े रहे तमिल महाकवि श्री सुब्रह्मण्य भारती, और श्री सिद्धार्थ आर्य के ताऊ और उनके पिता, बनारस के आज अखबार के बहुत प्रसिद्ध संपादक रहे श्री विद्या भास्कर, और विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री रहे श्री भीष्म आर्य को बहुत आदर से याद किया गया। श्री विद्या भास्कर की सुपुत्री श्रीमती इंदु गोपाल भी कार्यक्रम में शामिल हुईं।

श्रीमती पुष्पा भारती ने कहा कि यह बड़े दुःख और चिंता की बात है कि सारी भारतीय भाषाएं जड़ से उखड़ती जा रही हैं, लेकिन हम अनजान और बेपरवाह बने हुए हैं। अंग्रेजी की पढ़ाई गांव -गांव के प्राथमिक स्कूलों तक फैल गयी है। इससे भारतीय भाषाओं, भाषायी शिक्षा, और साहित्य और संस्कृति को बहुत नुकसान हो रहा है। हमारे मूल्यबोध भी बदल रहे हैं। इसका दूरगामी परिणाम बहुत घातक होगा। उन्होंने कहा कि जो समाज अपनी भाषा, बोली को अवमानना से देखे या देखने को मजबूर हो, वह समाज समर्थ और शक्तिशाली समाज बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता। हमें अपने समाज और साहित्य को जोड़ना होगा, भारतीय भाषाओं को बहुत जमीनी स्तर से सींचना होगा, और अपनी भाषा और बोली को स्वाभिमान और समृद्धि का संकल्प देना होगा। बुनियादी कांप माटी है भाषा। उससे मनुष्य की निर्मिति होती है। हमें इस निर्मिति को संभालना होगा।

उनके इस उद्बोधन के साक्षी बने मुंबई के हिंदी समाज के पुरोधा व्यक्तित्व श्री मिठाईलाल सिंह, पत्रकार श्री मनमोहन सरल, श्री सुदीप, श्री विश्वनाथ सचदेव, श्री फ़ीरोज़ अशरफ, श्री प्रकाश बाल जोशी, श्री विमल मिश्र , महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री श्री कृपाशंकर सिंह, हिंदी भाषी नेता श्री जय प्रकाश सिंह, श्री शिवजी सिंह, समाजसेवी श्री दिलीप सिंह , एसएनडीटी विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. माधुरी छेड़ा, मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रतन कुमार पांडे। कार्यक्रम में साहित्य , पत्रकारिता और समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।

इस मौके पर पूविप्र के सचिव पत्रकार श्री ओम प्रकाश ने घोषणा की कि पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा ९ अगस्त से अंग्रेजियत भगाओ अभियान चलाया जायेगा, और भारतीय भाषाओं को मजबूती से जोड़नेवाले डॉ धर्मवीर भारती के जन्मदिन २५ दिसंबर को भारतीय भाषा स्वाभिमान दिवस के रूप मनाया जाएगा। श्री ओम प्रकाश ने कहा कि धर्मयुग के संपादक के रूप में डॉ. भारती ने सभी भारतीय भाषाओं के लेखकों को धर्मयुग से जोड़ा था, और भाषाई आदान-प्रदान का बहुत सुन्दर उदाहरण सामने रखा था।

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